एक विशाल पत्थर, जो मंगल ग्रह की सतह से एक क्षुद्रग्रह के टकराने के बाद टूटकर अंतरिक्ष में निकल गया था, ने लगभग 140 मिलियन मील की दूरी तय की और उत्तर-पश्चिम अफ्रीका के रेगिस्तान में आ गिरा। यह पत्थर करीब 54 पाउंड (24.5 किलोग्राम) वजनी है और यह धरती पर अब तक मिला मंगल ग्रह का सबसे बड़ा टुकड़ा है।
न्यूयॉर्क में ऐतिहासिक नीलामी
बुधवार को यह उल्कापिंड न्यूयॉर्क शहर की एक नीलामी में करीब 5.3 मिलियन डॉलर में बिक गया। Sotheby’s नीलामी घर के मुताबिक, यह अब तक का सबसे महंगा बिका उल्कापिंड है। Sotheby’s की विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास शाखा की उपाध्यक्ष कassandra Hatton ने बताया, “इस उल्कापिंड के पास जाने पर ऐसा लगता है जैसे आप खुद मंगल ग्रह को देख रहे हों। इसकी सतह पर कई अनोखी लहरें और बनावट हैं।”
धरती तक पहुंचना था लगभग असंभव
वैज्ञानिकों के अनुसार, लाल, भूरे और स्लेटी रंग का यह उल्कापिंड धरती तक पहुंच सके, इसकी संभावना बेहद कम थी। Houston के Lunar and Planetary Institute के वैज्ञानिक एलेन ट्रेमन के अनुसार, जब यह उल्कापिंड धरती के वायुमंडल में घुसा होगा तो वह एक चमकदार आग के गोले जैसा दिखा होगा। अक्सर ऐसे पत्थर वायुमंडल में जलकर नष्ट हो जाते हैं, लेकिन कुछ ही धरती पर सही सलामत पहुंचते हैं, जिन्हें उल्कापिंड कहा जाता है।
खोज और वैज्ञानिक परीक्षण
यह उल्कापिंड नवंबर 2023 में नाइजर के अगादेज़ क्षेत्र में मिला था। इसकी उत्पत्ति की पुष्टि के लिए चीन की एक प्रयोगशाला में इसका परीक्षण किया गया, जहां इसमें मास्केलिनाइट नामक कांच जैसा पदार्थ पाया गया, जो अक्सर उल्कापिंडों में पाया जाता है। इसके अलावा, इसकी रासायनिक संरचना नासा के 1976 के वाइकिंग मिशन के दौरान पाए गए मंगल ग्रह के उल्कापिंडों से भी मेल खाती है।
अद्वितीयता और वैज्ञानिक महत्व
यह उल्कापिंड, जिसे NWA 16788 नाम दिया गया है, अब तक के सबसे बड़े मंगल ग्रह के उल्कापिंड के रूप में दर्ज किया गया है। Sotheby’s के अनुसार, धरती पर अब तक सिर्फ करीब 400 मंगल ग्रह के उल्कापिंड मिले हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे उल्कापिंडों के अध्ययन से सौरमंडल के इतिहास की जानकारी मिलती है, जिसे और किसी तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता।
संग्रह या विज्ञान—दोहरी सोच
इस उल्कापिंड की बिक्री को लेकर कुछ वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि इतने ऐतिहासिक और दुर्लभ नमूने का किसी निजी संग्रह में चले जाना विज्ञान के लिए नुकसानदेह हो सकता है। एडिनबरा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टीव ब्रुसाट ने कहा, “यह संग्रहालय में होना चाहिए, जहां आम लोग और बच्चे इसे देख और अध्ययन कर सकें।” वहीं, यूनिवर्सिटी ऑफ लीसेस्टर की वैज्ञानिक जूलिया कार्टराइट के अनुसार, निजी संग्रह और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन जरूरी है।