फॉर्मूला 1 का भविष्य एक बड़े परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा है। खेल के कमर्शियल बॉस से लेकर टीमों की तकनीकी साझेदारी तक, हर स्तर पर ऐसे बदलावों की चर्चा हो रही है जो F1 रेसिंग का चेहरा हमेशा के लिए बदल सकते हैं। एक तरफ जहाँ रेस के फॉर्मेट को और रोमांचक बनाने के लिए ‘रिवर्स ग्रिड’ जैसे विवादास्पद विचारों पर मंथन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर 2026 से लागू होने वाले नए तकनीकी नियम टीमों को एक नई शुरुआत करने का मौका देंगे।
रेस फॉर्मेट में क्रांतिकारी बदलाव की तैयारी
फॉर्मूला 1 के प्रमुख स्टेफानो डोमेनिकली ने भविष्य में ‘रिवर्स ग्रिड’ रेस को शामिल करने की संभावना जताकर हलचल मचा दी है। यह फॉर्मेट पहले से ही फॉर्मूला 2 और फॉर्मूला 3 में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके तहत, स्प्रिंट रेस के लिए क्वालीफाइंग में शीर्ष दस ड्राइवरों के क्रम को उलट दिया जाता है, जिससे तेज़ ड्राइवरों को पीछे से शुरुआत करनी पड़ती है और रेस में ओवरटेकिंग की संभावना बढ़ जाती है। दसवें स्थान के बाद के ड्राइवरों की पोजीशन दोनों रेसों के लिए समान रहती है।
डोमेनिकली ने द रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “मैं मानता हूँ कि हमारे पास विस्तार की संभावनाएँ हैं, जिन पर हमें ड्राइवरों, टीमों और निश्चित रूप से FIA के साथ चर्चा करने की आवश्यकता है।” उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वर्तमान में 24 में से 6 ग्रां प्री में होने वाले स्प्रिंट इवेंट्स की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है। डोमेनिकली ने कहा, “हम रिवर्स ग्रिड जैसे नए विचारों के लिए खुले हैं क्योंकि प्रशंसकों की बात सुनना और कुछ नया बनाने की कोशिश करना सही है। जो कोई गलती न करने में विश्वास करता है, वह कभी कुछ नया नहीं कर पाता।”
हालांकि, इस विचार का सभी ने स्वागत नहीं किया है। मौजूदा विश्व चैंपियन मैक्स वेरस्टैपेन पहले ही स्प्रिंट रेस वीकेंड के प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर कर चुके हैं। वहीं, 2019 में सात बार के विश्व चैंपियन लुईस हैमिल्टन ने इस प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा था, “जो लोग इसका प्रस्ताव दे रहे हैं, वे वास्तव में नहीं जानते कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं।”
2026 से तकनीकी नियमों में क्रांति
रेस फॉर्मेट में बदलाव की चर्चाओं के साथ-साथ, 2026 में फॉर्मूला 1 तकनीकी रूप से एक नए युग में प्रवेश करने जा रहा है। नए नियम कारों को वर्तमान पीढ़ी की कारों से बिल्कुल अलग बना देंगे। सबसे बड़ा बदलाव पावर यूनिट में होगा, जहाँ सस्टेनेबल फ्यूल पर चलने वाले इंटरनल कम्बशन इंजन (ICE) और इलेक्ट्रिक पावर के बीच 50-50 का विभाजन होगा।
इसके अलावा, चेसिस नियमों में भी बदलाव होंगे, जिससे कारें थोड़ी हल्की और अधिक कॉम्पैक्ट बनेंगी। टायरों का आकार भी छोटा होगा। एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि रियर विंग पर लगे ड्रैग रिडक्शन सिस्टम (DRS) की जगह, नई कारों में फ्रंट और रियर विंग्स दोनों में एक्टिव एयरोडायनामिक्स का इस्तेमाल किया जाएगा, जो ड्राइवरों को स्ट्रेट और कॉर्नर पर कार के एयरो बैलेंस को बदलने की सुविधा देगा।
रेड बुल-फोर्ड की महत्वाकांक्षी परियोजना
इन्हीं नए नियमों को ध्यान में रखते हुए टीमें अपनी तैयारी में जुटी हैं। रेड बुल रेसिंग 2025 सीज़न के बाद अपने मौजूदा इंजन सप्लायर होंडा से अलग हो जाएगी और ‘रेड बुल पावरट्रेंस’ बैनर तले फोर्ड के साथ मिलकर अपना 2026 पावर यूनिट विकसित कर रही है। शुरुआत में यह माना जा रहा था कि अमेरिकी ऑटो दिग्गज फोर्ड केवल पावर यूनिट के इलेक्ट्रिफिकेशन यानी हाइब्रिड सिस्टम में मदद करेगी।
लेकिन अब, फोर्ड ने खुलासा किया है कि रेड बुल की 2026 चैलेंजर कार पर उसके काम का दायरा बढ़कर “लगभग पूरी कार” तक पहुँच गया है। इसका मतलब है कि फोर्ड अब केवल इलेक्ट्रिक कंपोनेंट्स पर ही नहीं, बल्कि इंटरनल कम्बशन इंजन के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह डेवलपमेंट ऐसे समय में हो रहा है जब रेड बुल टीम एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है और अपनी मौजूदा RB21 कार के प्रदर्शन को लेकर चुनौतियों का सामना कर रही है। फोर्ड की इस बढ़ी हुई भागीदारी को 2026 में रेड बुल की सफलता सुनिश्चित करने के लिए एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है।