Sports

भारतीय शतरंज की नई सितारा: दिव्या देशमुख की चमकदार यात्रा

बचपन की भविष्यवाणी बनी हकीकत

हाल ही में यूट्यूब के एल्गोरिदम के कारण एक पुराना इंटरव्यू फिर से सुर्खियों में आ गया, जिसमें 12 वर्षीय दिव्या देशमुख को भारतीय महिला शतरंज का भविष्य बताया गया था। इस इंटरव्यू में, ChessBase India की ओर से दिव्या से पूछा गया कि क्या उन्होंने अब तक कोई वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती है। मुस्कान के साथ दिव्या ने एक-एक कर अपने खिताबों की सूची सुनानी शुरू की — अंडर-10 और अंडर-12 वर्ग में वर्ल्ड और एशियन चैंपियन, अंडर-7, अंडर-9 और अंडर-11 वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन। उपलब्धियों की लिस्ट गिनाते-गिनाते वह रुकती हैं और कहती हैं, “अब बस इतना ही काफी है।”

इसी इंटरव्यू में उनसे यह भी पूछा गया कि क्या वह खेल के दौरान विरोधियों से डरती नहीं हैं और क्या वह बड़े मुकाबलों में अक्सर जीत जाती हैं। दिव्या सहज भाव से जवाब देती हैं, “शायद ये सच है।”

19 साल की उम्र में विश्व कप विजेता

अब, सात साल बाद, वही दिव्या देशमुख 19 वर्ष की उम्र में अपनी लड़ाकू भावना और साहस के दम पर FIDE महिला शतरंज विश्व कप की विजेता बन गई हैं। जुलाई के महीने में उन्होंने विश्व रैंकिंग में छठवें स्थान पर मौजूद झू जिनर, अनुभवी ग्रैंडमास्टर हरिका द्रोणावल्ली, पूर्व महिला विश्व चैंपियन तान झोंगयी और भारत की पहली महिला शतरंज प्रतिभा कोनेरू हम्पी जैसी दिग्गज खिलाड़ियों को मात दी। यह उपलब्धि उन्होंने तब हासिल की, जब टूर्नामेंट की शुरुआत में वह केवल 15वीं सर्वोच्च रेटिंग वाली खिलाड़ी थीं।

विश्व कप जीतने के साथ ही दिव्या भारत की चौथी महिला ग्रैंडमास्टर भी बन गई हैं — यह उपलब्धि उनकी निरंतर मेहनत और मानसिक मजबूती का प्रमाण है।

रैंकिंग में भी ऐतिहासिक छलांग

FIDE की अगस्त रैंकिंग के अनुसार, दिव्या देशमुख ने क्लासिकल महिला शतरंज में 2478 अंक हासिल कर अपने करियर की अब तक की सर्वश्रेष्ठ रैंक — 15वीं — हासिल की है। उन्होंने न केवल कोनेरू हम्पी (2535) और हरिका द्रोणावल्ली (2487) जैसे भारत की अनुभवी खिलाड़ियों के बीच अपनी मजबूत स्थिति बनाई है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी खुद को शीर्ष 20 में शामिल कर लिया है।

शतरंज की दुनिया में भारत का बढ़ता प्रभुत्व

FIDE की रैंकिंग यह भी दर्शाती है कि भारत अब शतरंज की दुनिया में एक महाशक्ति बन चुका है। पुरुष वर्ग में आर प्रग्गनानंधा (2779), अर्जुन एरिगैसी (2776), डी गुकेश (2776) और विश्वनाथन आनंद (2743) जैसे खिलाड़ी टॉप 25 में हैं। रैपिड और ब्लिट्ज वर्गों में भी भारतीय खिलाड़ियों की उपस्थिति मजबूत बनी हुई है। विशेष रूप से युवा खिलाड़ी जैसे कि आर प्रग्गनानंधा और अर्जुन एरिगैसी सभी प्रारूपों में तेजी से ऊपर चढ़ रहे हैं।

निष्कर्ष

दिव्या देशमुख की कहानी सिर्फ व्यक्तिगत सफलता की नहीं, बल्कि भारत में शतरंज के व्यापक विकास और महिला खिलाड़ियों के आत्मविश्वास की मिसाल है। एक समय जो भविष्यवाणी लगती थी, वह अब हकीकत बन चुकी है। आने वाले वर्षों में दिव्या न केवल भारत, बल्कि वैश्विक शतरंज मंच पर भी एक बड़ी शक्ति बनकर उभर सकती हैं।