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बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर फाइनल्स: सात्विक-चिराग के लिए ‘ग्रुप ऑफ डेथ’ की चुनौती और बैडमिंटन का बदलता स्वरूप

बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर फाइनल्स का आगाज बुधवार से हो रहा है और इस बार भारतीय बैडमिंटन प्रेमियों के लिए उत्साह के साथ-साथ चिंता के भी कारण हैं। इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में, जहां साल भर के प्रदर्शन के आधार पर केवल शीर्ष आठ खिलाड़ी या जोड़ियां हिस्सा लेती हैं, भारत का प्रतिनिधित्व केवल सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी कर रही है। हालांकि, पूर्व विश्व नंबर 1 और वर्तमान में तीसरी रैंकिंग वाली इस जोड़ी के लिए राह आसान नहीं होने वाली है। उन्हें ग्रुप बी में रखा गया है, जिसे विशेषज्ञ ‘ग्रुप ऑफ डेथ’ मान रहे हैं, क्योंकि इसमें कई ओलंपिक पदक विजेता शामिल हैं।

कड़े प्रतिद्वंद्वी और सात्विक-चिराग की रणनीति

एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता सात्विक और चिराग को अपनी फॉर्म और संयम की कड़ी परीक्षा देनी होगी। उनका अभियान पेरिस ओलंपिक के रजत पदक विजेता चीन के लियांग वेई केंग और वांग चांग के खिलाफ शुरू होगा। इसके बाद उनका सामना इंडोनेशिया के फजर अल्फियान और मुहम्मद शोहिबुल फिक्री से होगा, जो अपनी गति और आक्रामक खेल के लिए जाने जाते हैं। ग्रुप चरण का उनका अंतिम मुकाबला शुक्रवार को मलेशिया के आरोन चिया और सोह वूई यिक के खिलाफ होगा, जो पेरिस ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता हैं और भारतीय जोड़ी के लिए अक्सर मुसीबत का सबब बने रहे हैं।

आंकड़ों पर नजर डालें तो चुनौती की गंभीरता का अंदाजा लग जाता है। चीनी जोड़ी के खिलाफ सात्विक-चिराग का रिकॉर्ड 3-7 का है, हालांकि हाल ही में चाइना मास्टर्स में भारतीय जोड़ी ने बाजी मारी थी। वहीं, मलेशियाई जोड़ी और इंडोनेशियाई जोड़ी के खिलाफ भी पिछले मुकाबलों में उन्हें संघर्ष करना पड़ा है। चूंकि हर ग्रुप से केवल दो ही जोड़ियां सेमीफाइनल में पहुंचेंगी, इसलिए गलती की गुंजाइश न के बराबर है। भले ही इस साल सात्विक और चिराग ने कोई खिताब नहीं जीता है, लेकिन चोट के बाद वापसी करते हुए उन्होंने गजब की निरंतरता दिखाई है। वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक के अलावा वे हांगकांग ओपन और चाइना मास्टर्स के उपविजेता भी रहे।

बैडमिंटन का बदलता स्वरूप और जोर्गेनसन की नई भूमिका

जहां एक तरफ डबल्स मुकाबलों में इतनी कश्मकश है, वहीं मेंस सिंगल्स में खेल का स्तर और तकनीकी गहराई एक नए दौर में पहुंच चुकी है। इसका सबसे दिलचस्प उदाहरण डेनमार्क के पूर्व वर्ल्ड नंबर 2 जान ओ जोर्गेनसन हैं। गौरतलब है कि जोर्गेनसन का आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच 2020 डेनमार्क ओपन में एंडर्स एंटोनसेन के खिलाफ था, और आज स्थिति यह है कि वे उसी एंटोनसेन के कोच के रूप में कोर्ट के किनारे नजर आते हैं। संन्यास के बाद स्पोर्ट्स साइकोलॉजी का कोर्स करने वाले जोर्गेनसन अब दुनिया के मौजूदा नंबर 3 खिलाड़ी एंटोनसेन को मानसिक और रणनीतिक रूप से तैयार कर रहे हैं।

दुबई, हांगकांग और अब हांगझोऊ में एंटोनसेन के साथ काम कर रहे जोर्गेनसन का कहना है कि उनका काम मुख्य रूप से ‘सपोर्ट’ देना और रणनीतिक चर्चा करना है। फ्रेंच ओपन में मिली जीत का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि कैसे विरोधियों के खिलाफ अलग-अलग रणनीति बनाने से उन्हें हर गेम में बढ़त मिली। एंटोनसेन के मुख्य कोच अभी भी कैस्पर एंटोनसेन हैं, लेकिन जोर्गेनसन का जुड़ना टीम के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ है।

शतरंज की बिसात जैसा हो गया है खेल

जोर्गेनसन के मुताबिक, आज का मेंस सिंगल्स उनके खेलने के दौर की तुलना में कहीं ज्यादा उन्नत हो चुका है। वे कहते हैं कि अब तुलना करना भी बेमानी है क्योंकि खेल का स्तर बहुत ऊंचा हो गया है। आज बैडमिंटन कोर्ट पर मुकाबला शतरंज की बिसात जैसा होता है। जोर्गेनसन याद करते हैं कि 2010-2015 के दौर में केवल चार-पांच खिलाड़ी ऐसे थे जो टूर्नामेंट जीत सकते थे और खेल या तो रक्षात्मक होता था या आक्रामक। लेकिन अब पहले राउंड से ही कड़ी टक्कर मिलती है। आज के खिलाड़ी को ‘ऑलराउंडर’ होना पड़ता है—उसे आक्रामकता के साथ-साथ दबाव झेलने और डिफेंस करने की कला में भी माहिर होना जरूरी है। अगर कोई खिलाड़ी केवल एक ही शैली में खेलता है, तो उसका टिकना मुश्किल है।

एंटोनसेन की क्षमता और आधुनिक बैडमिंटन

अपने जमाने के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार जोर्गेनसन बड़ी ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि एंटोनसेन का स्तर उनसे कहीं बेहतर है। वे मानते हैं कि एंटोनसेन की शारीरिक क्षमता और रणनीतिक समझ आज के जटिल खेल के अनुकूल है। एंटोनसेन अपने फिजिकल कोच थॉमस के साथ भी मिलकर काम कर रहे हैं, जो उनकी सफलता की कुंजी रहे हैं। जोर्गेनसन का कहना है कि पुराने दिनों को याद करके यह कहना अच्छा लगता है कि हमारा स्तर बहुत ऊंचा था, लेकिन हकीकत यही है कि आज का खेल कहीं ज्यादा जटिल और चुनौतीपूर्ण है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि हांगझोऊ में भारतीय जोड़ी डबल्स में और एंटोनसेन सिंगल्स में इन बदलती परिस्थितियों और कड़ी चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं। भारत के लिए साल के इस आखिरी बड़े टूर्नामेंट में सात्विक और चिराग से काफी उम्मीदें हैं, ठीक वैसे ही जैसे अतीत में पीवी सिंधु और साइना नेहवाल ने इस मंच पर देश का नाम रोशन किया था।